ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो काग़ज़ कि कश्ती, वो बारिश का पानी मुहल्ले की सबसे पुरानी निशानी वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी वो नानी की बातों में परियों का डेरा वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा भुलाये नहीं भूल सकता हैं कोई वो छोटी सी रातें, वो लंबी कहानी कड़ी धूंप में अपने घर से निकलना वो चिड़िया, वो बुलबुल, वो तितलि पकड़ना वो गुड़िया की शादी में लड़ना झगड़ना वो झूलों से गिरना, वो गिर के संभालना वो पितल के छल्लों के प्यारे से तोहफे वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी कभी रेत के उँचे टिलों पे जाना घरौंदे बनाना, बनाकर मिटाना वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी वो ख्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी ना दुनियाँ का गम था, ना रिश्तों के बंधन बड़ी खुबसूरत थी वो ज़िंदगानी
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Tuesday 15 April 2014
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
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