Total Pageviews

5581

Saturday, 19 April 2014

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई

दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई


दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे अहसान उतारता है कोई।
आईना दिख के तसल्ली हुई
हमको इस घर में जानता है कोई।
फक गया है सज़र पे फल शायद
फिर से पत्थर उछालता है कोई।
फिर नज़र में लहू के छींटे हैं
तुमको शायद मुग़ालता है कोई।
देर से गूँजते हैं सन्नाटे
जैसे हमको पुकारता है कोई।

मुग़ालता = Illusions
सज़र = Branch

No comments:

Post a Comment